दुनिया का मेला
दुनिया एक मेला है,
यहां हर कोई अकेला है।
यहां हर कोई मुसाफिर है,
थोड़े समय का।
यहां हर कोई वक्त गुजारेगा,
कोई दुख पायेगा तो कोई सुख पाएगा
कोई मोह माया के चक्कर में पड़ जायेगा।
यहां किसी के पास वक्त नहीं,
सभी अपने काम में मशगूल है।
यहां हर कोई पैसों के पीछे भाग रहा है
कोई ऐशो आराम से जी रहा है।
किसी को किसी की परवाह नही है,
अगर इस दुनिया में रहना है तो आंखे खोल कर रख, कानों से सुन।
जब ऊपर से बुलावा आएगा तो सब यहीं रह जायेगा।
खाली हाथ ही ऊपर जायेगा।
ये दुनिया का मेला फिर पीछे रह जायेगा।
kapil sharma
15-Apr-2021 07:27 PM
अच्छी कविता लिखती है आप हरप्रीत मैंम
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